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1 “यदि कोई व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक देता है, 
और वह पत्नी उसे छोड़ देती है तथा अन्य व्यक्ति से विवाह कर लेती है 
तो क्या वह व्यक्ति अपनी पत्नी के पास फिर आ सकता है नहीं! 
यदि वह व्यक्ति उस स्त्री के पास लौटेगा तो देश पूरी तरह गन्दा हो जाएगा। 
यहूदा, तुमने वेश्या की तरह अनेक प्रेमियों (असत्य देवताओं) के साथ काम किये 
और अब तुम मेरे पास लौटना चाहते हो!” यह सन्देश यहोवा का था। 
2 “यहूदा, खाली पहाड़ी की चोटी को देखो। 
क्या कोई ऐसी जगह है जहाँ तुम्हारा अपने प्रेमियों (असत्य देवताओं) के साथ शारीरिक सम्बन्ध न चला 
तुम सड़क के किनारे प्रेमियों की प्रतीक्षा करती बैठी हो। 
तुम वहाँ मरुभूमि में प्रतीक्षा करते अरब की तरह बैठी। 
तुमने देश को गन्दा किया है! 
कैसे तुमने बहुत से बुरे काम किये 
और तुम मेरी अभक्त रही। 
3 तुमने पाप किये अत: वर्षा नहीं आई! 
बसन्त समय की कोई वर्षा नहीं हुई। 
किन्तु अभी भी तुम लज्जित होने से इन्कार करती हो। 
4 किन्तु अब तुम मुझे बुलाती हो। 
‘मेरे पिता, तू मेरे बचपन से मेरे प्रिय मित्र रहा है।’ 
5 तुमने ये भी कहा, 
‘परमेश्वर सदैव मुझ पर क्रोधित नहीं रहेगा। 
परमेश्वर का क्रोध सदैव बना नहीं रहेगा।’ 
“यहूदा, तुम यह सब कुछ कहती हो, 
किन्तु तुम उतने ही पाप करती हो जितने तुम कर सकती हो।” 
6 उन दिनों जब योशिय्याह यहूदा राष्ट्र पर शासन कर रहा था। यहोवा ने मुझसे बातें की। यहोवा ने कहा, “यिर्मयाह, तुमने उन बुरे कामों को देखा जो इस्राएल ने किये तुमने देखा कि उसने कैसे मेरे साथ विश्वासघात किया। उसने हर एक पहाड़ी के ऊपर और हर एक हरे पेड़ के नीच झूठी मूर्तियों की पूजा करके व्यभिचार करने का पाप किया। 
7 मैंने अपने से कहा, ‘इस्राएल मेरे पास तब लौटेगी जब वह इन बुरे कामों को कर चुकेगी।’ किन्तु वह मेरे पास लौटी नहीं और इस्राएल की अविश्वासी बहन यहूदा ने देखा कि उसने क्या किया है 
8 इस्राएल विश्वासघातिनी थी और यहूदा जानती थी कि मैंने उसे क्यों दूर हटाया। यहूदा जानती थी कि मैंने उसको इसलिए अस्वीकृत किया कि उसने व्यभिचार का पाप किया था। किन्तु इसने उसकी विश्वासघाती बहन को डराया नहीं। यहूदा डरी नहीं। यहूदा भी निकल गई और उसने वेश्या की तरह काम किया। 
9 यहूदा ने यह ध्यान भी नहीं दिया कि वह वेश्या की तरह काम कर रही है। अत: उसने अपने देश को ‘गन्दा’ किया। उसने लकड़ी और पत्थर की बनी देवमूर्तियों की पूजा करके व्यभिचार का पाप किया। 
10 इस्राएल की अविश्वासी बहन (यहूदा) अपने पूरे हृदय से मेरे पास नहीं लौटी। उसने केवल बहाना बनाया कि वह मेरे पास लौटी है।” यह सन्देश यहोवा का था। 
11 यहोवा ने मुझसे कहा, “इस्राएल मेरी भक्त नहीं रही। किन्तु उसके पास कपटी यहूदा की अपेक्षा अच्छा बहाना था। 
12 यिर्मयाह, उत्तर की ओर देखो और यह सन्देश बोलो: 
“‘अविश्वासी इस्राएल के लोगों तुम लौटो।’ 
यह सन्देश यहोवा का था। 
‘मैं तुम पर भौहे चढ़ाना छोड़ दूँगा, मैं दयासागर हूँ।’ 
यह सन्देश यहोवा का था। 
‘मैं सदैव तुम पर क्रोधित नहीं रहूँगा।’ 
13 तुम्हें केवल इतना करना होगा कि तुम अपने पापों को पहचानो। 
तुम यहोवा अपने परमेश्वर के विरुद्ध गए, यह तुम्हारा पाप है। 
तुमने अन्य राष्ट्रों के लोगों की देव मूर्तियों को अपना प्रेम दिया। 
तुमने देव मूर्तियों की पूजा हर एक हरे पेड़ के नीचे की। 
तुमने मेरी आज्ञा का पालन नहीं किया।” 
यह सन्देश यहोवा का था। 
14 “अभक्त लोगों, मेरे पास लौट आओ।” यह सन्देश यहोवा का था। “मैं तुम्हारा स्वामी हूँ। मैं हर एक नगर से एक व्यक्ति लूँगा और हर एक परिवार से दो व्यक्ति और तुम्हें सिय्योन पर लाऊँगा। 
15 तब मैं तुम्हें नये शासक दूँगा। वे शासक मेरे भक्त होंगे। वे तुम्हारे मार्ग दर्शन ज्ञान और समझ से करेंगे। 
16 उन दिनों तुम लोग बड़ी संख्या में देश में होगे।” यह सन्देश यहोवा का है। 
“उस समय लोग फिर यह कभी नहीं कहेंगे, ‘मैं उन दिनों को याद करता हूँ जब हम लोगों के पास यहोवा का साक्षीपत्र का सन्दूक था।’ वे पवित्र सन्दूक के बारे में फिर कभी सोचेंगे भी नहीं। वे न तो इसे याद करेंगे और न ही उसके लिये अफसोस करेंगे। वे दूसरा पवित्र सन्दूक कभी नहीं बनाएंगे। 
17 उस समय, यरूशलेम नगर ‘यहोवा का सिंहासन’ कहा जाएगा। सभी राष्ट्र एक साथ यरूशलेम नगर में यहोवा के नाम को सम्मान देने आएंगे। वे अपने हठी और बुरे हृदय के अनुसार अब कभी नहीं चलेंगे। 
18 उन दिनों यहूदा का परिवार इस्राएल के परिवार के साथ मिल जायेगा। वे उत्तर में एक देश से एक साथ आएंगे। वे उस देश में आएंगे जिसे मैंने उनके पूर्वजों को दिया था।” 
19-20 मैंने अर्थात् यहोवा ने अपने से कहा, 
“मैं तुमसे अपने बच्चों का सा व्यवहार करना चाहता हूँ, 
मैं तुम्हें एक सुहावना देश देना चाहता हूँ। 
वह देश जो किसी भी राष्ट्र से अधिक सुन्दर होगा। 
मैंने सोचा था कि तुम मुझे ‘पिता’ कहोगे। 
मैंने सोचा था कि तुम मेरा सदैव अनुसरण करोगे। 
किन्तु तुम उस स्त्री की तरह हुए जो पतिव्रता नहीं रही। 
इस्राएल के परिवार, तुम मेरे प्रति विश्वासघाती रहे!” 
यह सन्देश यहोवा का था। 
21 तुम नंगी पहाड़ियों पर रोना सुन सकते हो। 
इस्राएल के लोग कृपा के लिये रो रहे और प्रार्थना कर रहे हैं। 
वे बहुत बुरे हो गए थे। 
वे अपने परमेश्वर यहोवा को भूल गए थे। 
22 यहोवा ने यह भी कहा: 
“इस्राएल के अविश्वासी लोगों, तुम मेरे पास लौट आओ। 
मेरे पास लौटो, और मैं तुम्हारे अविश्वासी होने के अपराध को क्षमा करूँगा।” 
लोगों को कहना चाहिये, “हाँ, हम लोग तेरे पास आएँगे 
तू हमारा परमेश्वर यहोवा है। 
23 पहाड़ियों पर देवमूर्तियों की पूजा मूर्खता थी। 
पर्वतों के सभी गरजने वाले दल केवल थोथे निकले। 
निश्चय ही इस्राएल की मुक्ति, 
यहोवा अपने परमेश्वर से है। 
24 हमारे पूर्वजों की हर एक अपनी चीज बलिरूप में उस घृणित ने खाई है। 
यह तब हुआ जब हम लोग बच्चे थे। 
उस घृणित ने हमारे पूर्वजों के पशु भेड़, पुत्र, पुत्री लिये। 
25 हम अपनी लज्जा में गड़ जायँ, अपनी लज्जा को हम कम्बल की तरह अपने को लपेट लेने दें। 
हमने अपने परमेश्वर यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। 
बचपन से अब तक हमने और हमारे पूर्वजों ने पाप किये हैं। 
हमने अपने परमेश्वर यहोवा की आज्ञा नहीं मानी है।” 
