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मन्दिर का आरोहण गीत। 
1 पूरे जीवन भर मेरे अनेक शत्रु रहे हैं। 
इस्राएल हमें उन शत्रुओं के बारे में बता। 
2 सारे जीवन भर मेरे अनेक शत्रु रहे हैं। 
किन्तु वे कभी नहीं जीते। 
3 उन्होंने मुझे तब तक पीटा जब तक मेरी पीठ पर गहरे घाव नहीं बने। 
मेरे बड़े—बड़े और गहरे घाव हो गए थे। 
4 किन्तु भले यहोवा ने रस्से काट दिये 
और मुझको उन दुष्टों से मुक्त किया। 
5 जो सिय्योन से बैर रखते थे, वे लोग पराजित हुए। 
उन्होंने लड़ना छोड़ दिया और कहीं भाग गये। 
6 वे लोग ऐसे थे, जैसे किसी घरकी छत पर की घास 
जो उगने से पहले ही मुरझा जाती है। 
7 उस घास से कोई श्रमिक अपनी मुट्ठी तक नहीं भर पाता 
और वह पूली भर अनाज भी पर्याप्त नहीं होती। 
8 ऐसे उन दुष्टों के पास से जो लोग गुजरते हैं। 
वे नहीं कहेंगे, “यहोवा तेरा भला करे।” 
लोग उनका स्वागत नहीं करेंगे और हम भी नहीं कहेंगे, “तुम्हें यहोवा के नाम पर आशीष देते हैं।” 
