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आसाप का एक प्रगीत। 
1 हे परमेश्वर, क्या तूने हमें सदा के लिये बिसराया हैय? 
क्योंकि तू अभी तक अपने निज जनों से क्रोधित है? 
2 उन लोगों को स्मरण कर जिनको तूने बहुत पहले मोल लिया था। 
हमको तूने बचा लिया था। हम तेरे अपने हैं। 
याद कर तेरा निवास सिय्योन के पहाड़ पर था। 
3 हे परमेश्वर, आ और इन अति प्राचीन खण्डहरों से हो कर चल। 
तू उस पवित्र स्थान पर लौट कर आजा जिसको शत्रु ने नष्ट कर दिया है। 
4 मन्दिर में शत्रुओं ने विजय उद्घोष किया। 
उन्होंने मन्दिर में निज झंडों को यह प्रकट करने के लिये गाड़ दिया है कि उन्होंने युद्ध जीता है। 
5 शत्रुओं के सैनिक ऐसे लग रहे थे, 
जैसे कोई खुरपी खरपतवार पर चलाती हो। 
6 हे परमेश्वर, इन शत्रु सैनिकों ने निज कुल्हाडे और फरसों का प्रयोग किया, 
और तेरे मन्दिर की नक्काशी फाड़ फेंकी। 
7 परमेश्वर इन सैनिकों ने तेरा पवित्र स्थान जला दिया। 
तेरे मन्दिर को धूल में मिला दिया, 
जो तेरे नाम को मान देने हेतु बनाया गया था। 
8 उस शत्रु ने हमको पूरी तरह नष्ट करने की ठान ली थी। 
सो उन्होंने देश के हर पवित्र स्थल को फूँक दिया। 
9 कोई संकेत हम देख नहीं पाये। 
कोई भी नबी बच नहीं पाया था। 
कोई भी जानता नहीं था क्या किया जाये। 
10 हे परमेश्वर, ये शत्रु कब तक हमारी हँसी उड़ायेंगे 
क्या तू इन शत्रुओं को तेरे नाम का अपमान सदा सर्वदा करने देगा। 
11 हे परमेश्वर, तूने इतना कठिन दण्ड हमकों 
क्यों दिया तूने अपनी महाशक्ति का प्रयोग किया और हमें पूरी तरह नष्ट किया! 
12 हे परमेश्वर, बहुत दिनों से तू ही हमारा शासक रहा। 
इस देश में तूने अनेक युद्ध जीतने में हमारी सहायता की। 
13 हे परमेश्वर, तूने अपनी महाशक्ति से लाल सागर के दो भाग कर दिये। 
14 तूने विशालकाय समुद्री दानवों को पराजित किया! 
तूने लिव्यातान के सिर कुचल दिये, और उसके शरीर को जंगली पशुओं को खाने के लिये छोड़ दिया। 
15 तूने नदी, झरने रचे, फोड़कर जल बहाया। 
तूने उफनती हुई नदियों को सुखा दिया। 
16 हे परमेश्वर, तू दिन का शासक है, और रात का भी शासक तू ही है। 
तूने ही चाँद और सूरज को बनाया। 
17 तू धरती पर सब की सीमाएं बाँधता है। 
तूने ही गर्मी और सर्दी को बनाया। 
18 हे परमेश्वर, इन बातों को याद कर। और याद कर कि शत्रु ने तेरा अपमान किया है। 
वे मूर्ख लोग तेरे नाम से बैर रखते हैं! 
19 हे परमेश्वर, उन जंगली पशुओं को निज कपोत मत लेने दे! 
अपने दीन जनों को तू सदा मत बिसरा। 
20 हमने जो आपस में वाचा की है उसको याद कर, 
इस देश में हर किसी अँधेरे स्थान पर हिंसा है। 
21 हे परमेश्वर, तेरे भक्तों के साथ अत्याचार किये गये, 
अब उनको और अधिक मत सताया जाने दे। 
तेरे असहाय दीन जन, तेरे गुण गाते है। 
22 हे परमेश्वर, उठ और प्रतिकार कर! 
स्मरण कर की उन मूर्ख लोगों ने सदा ही तेरा अपमान किया है। 
23 वे बुरी बातें मत भूल जिन्हें तेरे शत्रुओं ने प्रतिदिन तेरे लिये कही। 
भूल मत कि वे किस तरह से युद्ध करते समय गुरर्ये। 
